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विनाश तो यूँ निश्चित, क्या कांड ? क्या कर्म ? कि

विनाश तो यूँ निश्चित,

क्या कांड ? क्या कर्म ?

किंचित पंचतत्व निरर्थक यहाँ,

क्या देह ?क्या चर्म?

रामराज तो बस कल्पना मात्र ,

क्या लज्जा ?क्या शर्म?

नहीं सुरक्षित यहाँ कोई , 

क्या मानवता ?क्या धर्म?

क्या मानवता ?क्या धर्म?



-gunjan #moblynching#justice#reality#society#thought#sadhus
विनाश तो यूँ निश्चित,

क्या कांड ? क्या कर्म ?

किंचित पंचतत्व निरर्थक यहाँ,

क्या देह ?क्या चर्म?

रामराज तो बस कल्पना मात्र ,

क्या लज्जा ?क्या शर्म?

नहीं सुरक्षित यहाँ कोई , 

क्या मानवता ?क्या धर्म?

क्या मानवता ?क्या धर्म?



-gunjan #moblynching#justice#reality#society#thought#sadhus