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मोहब्बत की गलियों में बाग़बाँ की कलियों में, चलियों

मोहब्बत की गलियों में बाग़बाँ की कलियों में,
चलियों न अकेले यूँ दुश्वार होगा जीना..!

भोले और सती की तरह न झेलें विरह,
पड़े न हमें यूँ अकेलेपन का ज़हर कहीं पीना..!

बिना तेरे जीवन कहीं न संभव है,
साथी मुश्किल है यूँ ही तेरे बिना जीना..!

मरहम बनकर मर भी हम जायेंगे पर,
तुम उच्च विचारों से हर एक ज़ख्म को सीना..!

अनजाने में कहीं ये कही बातें भूल न जाना,
नहीं बनना हमें कभी कोई भी गुज़रा ज़माना..!

दबी है ख़्वाहिशें उग रहा है प्रेम का पौधा,
औदा समझ कर छोटा न दामन छुड़ाना..!

ज़ख्मों को फूल बताना आदत है हमारी,
तुम हर परिस्थिति में बस साथ निभाना..!

कदम कदम पर बैठे हैं साँसे छीनने को अपने ही,
हाल-ए-दिल न किसी से कभी बताना..!

जलती बूंदों सा जीवन हमारा,
बुझे हुए है न जाने क्यों सपने..!

स्वार्थ की दुनिया है भरे पड़े हैं लोभी यहाँ,
भोगी बन कर लगेंगे नाम यूँ जपने..!

भेड़ियों के भेष में नज़र आने लगे हैं,
बेड़ियों में बाँधने की चाहत हमें रखते हैं अपने..!

तुम और सुकून जैसे ग्रीष्म ऋतु में मानसून,
प्रसून बन के महकाती हो जीवन यूँ मन भर..!

बस तुम रहना सदा मेरी बनकर,
किसी की बातों में न आना यूँ तनकर..!

मेरे दिल की जमीं को बनाना आशियाँ हमारा,
और साथ रहना इसमें ख़ूबसूरत ख़्यालात बनकर..!

©SHIVA KANT
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