अपने दिल का कोना कोना, फिर से सजाऊंगी, उस हिस्से का क्या, जो टूट गया, उसे कैसे जोड़, सजा पाऊँगी! जो कैद में यादों के टूटे दीवारों में, उन दिवारों की कैसे मरम्मत कराऊंगी! मैं हताश हूँ, तेरा होते हुए भी, किसी और के होने की, मैं फिर से सपने कैसे बुन पाऊँगी! कुतर गया जो मेरे मासूम विश्वास का पन्ना, क्या वो भरोसा मैं फिर से दिखा पाऊंगी। जो ठीक से चलना भी ना सीख पाई इस दुनियाँ में अब तक, क्या वो उड़ान मैं उड़ पाऊंगी, जो ढुंढ रही मैं अब तक, क्या मैं पा पाऊँगी!