लो फिर सज उठी महफ़िल तेरा ज़िक्र जो हुआ, कुछ कहे महताब तो कुछ कहे बादल झुका हुआ, इंतज़ार में तेरे आज भी महकता है गुलिस्तां मेरा, प्यार किया यादों से तो क्या हुआ तू मेरा ना हुआ, शाम के साहिलों पर मधुबन में रास रचाए कान्हा, आस्था दिल में रख जनू ए इश्क़ मेरा फना हुआ, बेरूखी तेरी ज़हर बन जिस्म से जां निचोड़ती गई, जज़्बातों का मेरे देखा धीरे - धीरे से कत्ल हुआ, कहने को तो हम-नशी हमारी राहों के रहगुज़र है, ना जाने कैसा राज़ था जो हम से ज़ाहिर ना हुआ। शाम के साहिलों पर... #शामकेसाहिल #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi #रोज़ी_संबरीया