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// देखा है ऐसे भी मैंने....// देखा है ऐसे भी मै

//   देखा है ऐसे भी मैंने....//

देखा है ऐसे भी मैंने, 
         आग लगाने वालों को !
मनहूसियत फैलाने वालों को, 
        अपने ज़हर से डसने वालों को !
रही न जिनकी कमीनेपन की 
       न कोई जात, न कोई हद !
देखा है ऐसे भी मैंने, मिश्री बनकर 
       पीठ में छुरा चलाने वालो को !
दोस्ती की आड़ में, बर्बाद करने 
      वालों को, इंसानियत खत्म कर 
देने वालों को !
     देखा है ऐसे भी मैंने, कुछ बईमान 
बेशर्मो को, दगाबाज़ इंसानो को..!! #देखाहैऐसाभीमैंने
//   देखा है ऐसे भी मैंने....//

देखा है ऐसे भी मैंने, 
         आग लगाने वालों को !
मनहूसियत फैलाने वालों को, 
        अपने ज़हर से डसने वालों को !
रही न जिनकी कमीनेपन की 
       न कोई जात, न कोई हद !
देखा है ऐसे भी मैंने, मिश्री बनकर 
       पीठ में छुरा चलाने वालो को !
दोस्ती की आड़ में, बर्बाद करने 
      वालों को, इंसानियत खत्म कर 
देने वालों को !
     देखा है ऐसे भी मैंने, कुछ बईमान 
बेशर्मो को, दगाबाज़ इंसानो को..!! #देखाहैऐसाभीमैंने