मनमानियाँ ********** दो हरफ को तरसती है सलमा कहीं। अपने फन को छिपाती है राधा यहाँ। बात कल की नही ये खबर आज की। पढी लिखी को कहते है ज्वाला यहाँ। न जाने कब समझेगी दुनिया इन्हें बक्शेगी कभी या नही रूह को। करता रहेगा समाज मनमानियाँ रोशनी को तरसती हैं रश्मियाँ यहाँ। सुधा भारद्वाज"निराकृति" विकासनगर उत्तराखण्ड ©सुधा भारद्वाज #मनमानियाँ