घर था कोई मकान नही यादें थी जझबात थे चीजे या कोई सामान नही बाहर होते तो वापस घर आने की ललक कई दिनों बाद अपनों की देखने झलक प्यार था दुलार था झगडे थे अनबन थी कोई बैर नही किसी बात पे चिड जाना तीन घंटे देर से आना मिलके बैठ सब साथ खाना तब सब होता था, अब नही वो भूल थी या चूक थी क्यो हुई कुछ पता नही घर था साथ थे अब न घर है, न वो है बचा कुछ नही कुछ नही जो है वो बस लाश है जालसाजों की ताश है उनका दिल अब रोता नही दिखाने थे आँसू जो छलकाने पडे मक्कारी मे अंदर अब कुछ होता नही ऱिश्ते कहने को खून के पर हकीकत मे होते नही मैने देखे है बनते बिगडते रिश्तो को जब जब दीवारे गिरती बनती रही #SadharanManushya #Rishtey #Deewar #Ghar #Dikhawa #Love ©#maxicandragon घर था कोई मकान नही यादें थी जझबात थे चीजे या कोई सामान नही बाहर होते तो वापस घर आने की ललक कई दिनों बाद अपनों की देखने झलक प्यार था दुलार था झगडे थे अनबन थी कोई बैर नही