दम है काँटों के , पथ पर , अकेले चलकर ; जाना होगा सपना बस , मंजिल को छूकर के ; आना होगा माना होगा , जिन्होंने ने ,अबतलक कमजोर हमें एकबार फिर से हमें उन्हें कुछ करके दिखाना होगा कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद दम है !.........कीर्तिप्रद