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ज़ब ज़िन्दगी उलझ जाये, जागी हुई आँखों में ल

ज़ब ज़िन्दगी उलझ जाये,
         जागी हुई आँखों में लगते ये
चुभे कांच के ख़्वाब जैसे ।
         एक मंज़िल की तलाश ज़ारी,
और एक भटकती खुश्बू लिए हुए ।
         यह वक़्त की पलकों पर
सोती हुई वीरानियाँ जैसे ।
         ज़ज़्बात-ए-मोहब्बत की
ये अंगड़ाईयाँ ।
         बड़े काम की होती है
ये तन्हाईयाँ वैसे ।

- सुचिता पाण्डेय✍



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ज़ब ज़िन्दगी उलझ जाये,
         जागी हुई आँखों में लगते ये
चुभे कांच के ख़्वाब जैसे ।
         एक मंज़िल की तलाश ज़ारी,
और एक भटकती खुश्बू लिए हुए ।
         यह वक़्त की पलकों पर
सोती हुई वीरानियाँ जैसे ।
         ज़ज़्बात-ए-मोहब्बत की
ये अंगड़ाईयाँ ।
         बड़े काम की होती है
ये तन्हाईयाँ वैसे ।

- सुचिता पाण्डेय✍



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