ज़ब ज़िन्दगी उलझ जाये, जागी हुई आँखों में लगते ये चुभे कांच के ख़्वाब जैसे । एक मंज़िल की तलाश ज़ारी, और एक भटकती खुश्बू लिए हुए । यह वक़्त की पलकों पर सोती हुई वीरानियाँ जैसे । ज़ज़्बात-ए-मोहब्बत की ये अंगड़ाईयाँ । बड़े काम की होती है ये तन्हाईयाँ वैसे । - सुचिता पाण्डेय✍ नमस्कार लेखकों।😊 हमारे #rzcinemagraph पोस्ट पर Collab करें और अपने शब्दों से अपने विचार व्यक्त करें । इस पोस्ट को हाईलाईट और शेयर करना न भूलें!😍 हमारे पिन किये गए पोस्ट को ज़रूर पढ़ें🥳