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ख़ुदा ने जब की होगी कल्पना इस कायनात की उस ख़्वाब

ख़ुदा ने जब की होगी
कल्पना इस कायनात की
उस ख़्वाब में रची-बसी 
रूमानी फ़िज़ा हो तुम

फ़ना हो गया था मैं
दीदार-ए-अव्वल पर ही
इज़हार करुॅं या'कि जाने दूं 
दिलोदिमाग में चलती निजा हो तुम

सुबह तुमसे, है शाम तुमसे
जी सकूं तुम बिन, अब संभव नहीं
मेरी धमनियों में बह रहे 
रक्त के हर कण की ग़िजा हो तुम

शुक्रगुजार हूँ ख़ुदा का
जो इस जन्म में मिलीं
अब मांगता जिसे जन्मोजन्म
मेरी वो इल्तिज़ा हो तुम

©Kirbadh #hugday  हिंदी कविता प्रेम कविता प्यार पर कविता
ख़ुदा ने जब की होगी
कल्पना इस कायनात की
उस ख़्वाब में रची-बसी 
रूमानी फ़िज़ा हो तुम

फ़ना हो गया था मैं
दीदार-ए-अव्वल पर ही
इज़हार करुॅं या'कि जाने दूं 
दिलोदिमाग में चलती निजा हो तुम

सुबह तुमसे, है शाम तुमसे
जी सकूं तुम बिन, अब संभव नहीं
मेरी धमनियों में बह रहे 
रक्त के हर कण की ग़िजा हो तुम

शुक्रगुजार हूँ ख़ुदा का
जो इस जन्म में मिलीं
अब मांगता जिसे जन्मोजन्म
मेरी वो इल्तिज़ा हो तुम

©Kirbadh #hugday  हिंदी कविता प्रेम कविता प्यार पर कविता
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