~ चलो घास की एक छतरी बुने... हरी हरी घाँस। कुछ छोटे छोटे फूलो वाली घाँस ! छतरी की डंडी हो इस छोटे से गुलाब के पौधे की जो इस समय यहाँ पर उगा है, घाँस की छतरी, गुलाब की टहनी की डंडी वाली । जिसे जब भी मै ऊपर तान कर चलू, मकानो के छज्जो पे खड़े लोग ईर्ष्या करे इससे क्यूंकि उनके पास जो नहीं। काश ये घाँस, कभी न सूखे, गुलाब की टहनी हमेशा हरी रहे. और वो छोटे छोटे फूल कभी न झड़े कितना अच्छा हो अगर ऐसा हो तो पर इतना कुछ सोचने पर मन में आनंद और दुःख भरी व्यग्रता समान मात्रा में क्यूँ आ रही है ? विचार आता है की "काश मुझे ये करना ही ना पड़ता, क्यू बनाई मैंने घाँस की छतरी ? और क्यूँ आशावान हुँ ? कि ये कभी ना सूखे। बताऊ क्यूँ ? समय रहते अगर मैंने उस जगह से घाँस और पौधे ना हटाये होते, तो रौंद दिये जाते, बड़ी बेदर्दी से। बेदर्दी ? मन ने कहा, पौधों को दर्द थोड़े ना होता है ! फिर हँसा वो ! मन तो किया की बताऊ, मन को क्या .. ..... More in caption ~ शहज़ाद अख्तर वकील #yqbaba ..... .... मन तो किया की बताऊ, मन को क्या होता है दर्द ! आज उसी जगह पर एक गगनचुम्बी इमारत है, जिसके नीचे से, जब भी मै अपनी घाँस की छतरी लेकर गुज़रता हू,