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~ चलो घास की एक छतरी बुने...  हरी हरी घाँस। कुछ

~ चलो घास की एक छतरी बुने... 


हरी हरी घाँस।
कुछ छोटे छोटे फूलो वाली घाँस !
छतरी की डंडी हो इस छोटे से गुलाब के पौधे की 
जो इस समय यहाँ पर उगा है,
घाँस की छतरी, गुलाब की टहनी की डंडी वाली ।  
जिसे जब भी मै ऊपर तान कर चलू,
मकानो के छज्जो पे खड़े लोग ईर्ष्या करे इससे 
क्यूंकि उनके पास जो नहीं।
काश ये घाँस, कभी न सूखे,
गुलाब की टहनी हमेशा हरी रहे.
और वो छोटे छोटे फूल कभी न झड़े 
कितना अच्छा हो 
अगर ऐसा हो तो 
पर इतना कुछ सोचने पर 
मन में 
आनंद और दुःख भरी व्यग्रता 
समान मात्रा में क्यूँ आ रही है ?
विचार आता है की 
"काश मुझे ये करना ही ना पड़ता,
क्यू बनाई मैंने घाँस की छतरी ?
और क्यूँ आशावान हुँ ?
कि ये कभी ना सूखे। 
बताऊ क्यूँ ?
समय रहते अगर मैंने उस जगह से घाँस और पौधे ना हटाये होते, 
तो रौंद दिये जाते,
बड़ी बेदर्दी से। 
बेदर्दी ?
मन ने कहा, 
पौधों  को  दर्द थोड़े ना होता है ! 
फिर हँसा वो ! 
मन तो किया की बताऊ, 
मन को क्या ..
.....
More in caption

~ शहज़ाद अख्तर वकील 

 #yqbaba 
.....
....
मन तो किया की बताऊ, 
मन को क्या होता है दर्द !
आज उसी जगह पर एक गगनचुम्बी इमारत है,
जिसके नीचे से, 
जब भी मै अपनी घाँस की छतरी लेकर गुज़रता हू, 
~ चलो घास की एक छतरी बुने... 


हरी हरी घाँस।
कुछ छोटे छोटे फूलो वाली घाँस !
छतरी की डंडी हो इस छोटे से गुलाब के पौधे की 
जो इस समय यहाँ पर उगा है,
घाँस की छतरी, गुलाब की टहनी की डंडी वाली ।  
जिसे जब भी मै ऊपर तान कर चलू,
मकानो के छज्जो पे खड़े लोग ईर्ष्या करे इससे 
क्यूंकि उनके पास जो नहीं।
काश ये घाँस, कभी न सूखे,
गुलाब की टहनी हमेशा हरी रहे.
और वो छोटे छोटे फूल कभी न झड़े 
कितना अच्छा हो 
अगर ऐसा हो तो 
पर इतना कुछ सोचने पर 
मन में 
आनंद और दुःख भरी व्यग्रता 
समान मात्रा में क्यूँ आ रही है ?
विचार आता है की 
"काश मुझे ये करना ही ना पड़ता,
क्यू बनाई मैंने घाँस की छतरी ?
और क्यूँ आशावान हुँ ?
कि ये कभी ना सूखे। 
बताऊ क्यूँ ?
समय रहते अगर मैंने उस जगह से घाँस और पौधे ना हटाये होते, 
तो रौंद दिये जाते,
बड़ी बेदर्दी से। 
बेदर्दी ?
मन ने कहा, 
पौधों  को  दर्द थोड़े ना होता है ! 
फिर हँसा वो ! 
मन तो किया की बताऊ, 
मन को क्या ..
.....
More in caption

~ शहज़ाद अख्तर वकील 

 #yqbaba 
.....
....
मन तो किया की बताऊ, 
मन को क्या होता है दर्द !
आज उसी जगह पर एक गगनचुम्बी इमारत है,
जिसके नीचे से, 
जब भी मै अपनी घाँस की छतरी लेकर गुज़रता हू, 

#yqbaba ..... .... मन तो किया की बताऊ,  मन को क्या होता है दर्द ! आज उसी जगह पर एक गगनचुम्बी इमारत है, जिसके नीचे से,  जब भी मै अपनी घाँस की छतरी लेकर गुज़रता हू,