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वो खामोश लड़की.. वर्ष 2011 2012,2013,2014,और 2015

वो खामोश लड़की.. 
वर्ष 2011 2012,2013,2014,और 2015 का कुछ वक्त हमने साथ में बिताया,
 एक साथी के रूप में, एक दोस्त के रूप में , और एक दूसरे के मेंटोर के रूप में, इन सालों में हमने जाना एक दूसरे को, जानी एक दूसरे की खामियां, और खूबियां ,पर कहते है ना वक्त बदलता है और फिर सब विपरीत होता है हमारे हालिया हालातों के, कुछ ऐसा ही हुआ उन दोनो लड़कीयो ने ट्यूशन आना बन्द कर दिया था। क्युकी बारहवी के पेपर आने वाले थे। ये बारहवी के पेपर, दोस्ती और सोलह साल वाले प्रेम की तेरहवी जैसे होते है। जिसमे हर सुबह पैठे और दही चीनी खिलाया जाता है व हर उस शक्स को जो इन क्रियाओ में संलिप्त  रहता
पेपर के बाद हम सब अलग हो गए और एक बात थी जो दर्द देती थी। वो थी हमारे ना मिलने की उम्मीद,
पर वक्त आपके लिए आपसे ज्यादा सोच कर रखता है, और यही हुआ जब मैंने B.Sc के पहले ही दिन अपने कॉलेज में उन दोनो को अपने सामने देखा, उनमे से लंबी वाली लडकी पास आकर बोली, बेटा आसानी से तेरा पीछा ना छोड़ेंगे पर छोटी वाले वही लड़की जो खामोश रहकर सब कुछ कह जाती थी। पास खडी थी और मुस्करा रही थी,मुझे उससे प्रेम नही था पर मैं चाहता था की की उससा ही हो मेरी जिंदगी में कोई , जो बस इसी खामोशी से मेरी हर बात को समझ जाए,B.SC.  की क्लासो से ज्यादा हम अपनी मजाक की क्लास लेते थे, पेपर के समय वो छोटी सी लड़की मेरे पास बैठी थी और बार- बार मेरे मैं से देखने की कोशिश कर रही थी। पर उस असफलता के सिवा कुछ नही मिल रहा था। मैंने उसकी तत्परता को भांपते हुए। अपनी कॉपी के पन्ने उसकी तरफ कर दिये, वो मुस्करा कर लिखने लगी, मैंने अपने किसी और शैक्षिक कार्य को पूरा करने के लिए पहली साल के बाद BSc और शहर को छोड़ दिया, फिर जब भी कभी अपने शहर जाता तो वो दोनो मिल ही जाती थी,वो छोटी लड़की उसी खामोशी और मुस्कराहट के साथ वो हम सबसे मिलती थी।पर कहते हैं ना कि जिंदगी में हर चीज वैसी नही होती जैसा हम सोचकर रखते है क्युकी हम इस नाटकीय संसार के पात्र है और वो खुदा या ईश्वर इस संपूर्ण नाटक का  नाटककार है यह निर्णय वही लेता है कि किस पात्र की अवधि इस रंगमंच पर कितनी होगी। एक दिन जब उस लंबी लड़की से बात हैं कर रहा था तो मैंने पूछा और खामोश  बच्ची कहाँ है वो कुछ देर तो चुप रही फिर उसने बताया कि "यार वो नही रही", कुछ चीजे होती है जिन पर हमे ना चाहते हुए  भी भरोसा करना पडता है। कुछ ये भी ऐसा ही था मेरे लिए, दिमाग में गूँज रही थी उसकी वो खामोशी और मुस्कराहट जो शायद खो गयी थी इस अनंत आसमान में वापस ना आने वाली उम्मीद के साथ..... 
........#जलज 2011 2012,2013,
2014,और 2015 का कुछ वक्त हमने साथ में बिताया, एक साथी के रूप में, एक दोस्त के रूप में , और एक दूसरे के मेंटोर के रूप में, इन सालों में हमने जाना एक दूसरे को, जानी एक दूसरे की खामियां, और खूबियां ,पर कहते है ना वक्त बदलता है और फिर सब विपरीत होता है हमारे हालिया हालातों के, कुछ ऐसा ही हुआ उन दोनो लड़कीयो ने ट्यूशन आना बन्द कर दिया था। क्युकी बारहवी के पेपर आने वाले थे। ये बारहवी के पेपर, दोस्ती और सोलह साल वाले प्रेम की तेरहवी जैसे होते है। जिसमे हर सुबह पैठे और दही चीनी खिलाया जाता है व हर उस शक्स को जो इन क्रियाओ में संलिप्त  रहता है, 
पेपर के बाद हम सब अलग हो गए और एक बात थी जो दर्द देती थी। वो थी हमारे ना मिलने की उम्मीद,
पर वक्त आपके लिए आपसे ज्यादा सोच कर रखता है, और यही हुआ जब मैंने B.Sc के पहले ही दिन अपने कॉलेज में उन दोनो को अपने सामने देखा, उनमे से लंबी वाली लडकी पास आकर बोली, बेटा आसानी से तेरा पीछा ना छोड़ेंगे पर छोटी वाले वही लड़की जो खामोश रहकर सब कुछ कह जाती थी। पास खडी थी और मुस्करा रही थी,मुझे उससे प्रेम नही था पर मैं चाहता था की की उससा ही हो मेरी जिंदगी में कोई , जो बस इसी खामोशी से मेरी हर बात को समझ जाए,B.SC.  की क्लासो से ज्यादा हम अपनी मजाक की क्लास लेते थे, पेपर के समय वो छोटी सी लड़की मेरे पास बैठी थी और बार- बार मेरे मैं से देखने की कोशिश कर रही थी। पर उस असफलता के सिवा कुछ नही मिल रहा था। मैंने उसकी तत्परता को भांपते हुए। अपनी कॉपी के पन्ने उसकी तरफ कर दिये, वो मुस्करा कर लिखने लगी, मैंने अपने किसी और शैक्षिक कार्य को पूरा करने के लिए पहली साल के बाद BSc और शहर को छोड़ दिया, फिर जब भी कभी अपने शहर जाता तो वो दोनो मिल ही जाती थी,वो छोटी लड़की उसी खामोशी और मुस्कराहट के साथ वो हम सबसे मिलती थी।पर कहते हैं ना कि जिंदगी में हर चीज वैसी नही होती जैसा हम सोचकर रखते है क्युकी हम इस नाटकीय संसार के पात्र है और वो खुदा या ईश्वर इस संपूर्ण नाटक का  नाटककार है यह निर्णय वही लेता है कि किस पात्र की अवधि इस रंगमंच पर कितनी होगी। एक दिन जब उस लंबी लड़की से बात हैं कर रहा था तो मैंने पूछा और खामोश  बच्ची कहाँ है वो कुछ देर तो चुप रही फिर उसने बताया कि "यार वो नही रही", कुछ चीजे होती है जिन पर हमे ना चाहते हुए  भी भरोसा करना पडता है। कुछ ये भी ऐसा ही था मेरे लिए, दिमाग में गूँज रही थी उसकी वो खामोशी और मुस्कराहट जो शायद खो गयी थी इस अनंत आसमान में वापस ना आने वाली उम्मीद के साथ..... 
........#जलज
वो खामोश लड़की.. 
वर्ष 2011 2012,2013,2014,और 2015 का कुछ वक्त हमने साथ में बिताया,
 एक साथी के रूप में, एक दोस्त के रूप में , और एक दूसरे के मेंटोर के रूप में, इन सालों में हमने जाना एक दूसरे को, जानी एक दूसरे की खामियां, और खूबियां ,पर कहते है ना वक्त बदलता है और फिर सब विपरीत होता है हमारे हालिया हालातों के, कुछ ऐसा ही हुआ उन दोनो लड़कीयो ने ट्यूशन आना बन्द कर दिया था। क्युकी बारहवी के पेपर आने वाले थे। ये बारहवी के पेपर, दोस्ती और सोलह साल वाले प्रेम की तेरहवी जैसे होते है। जिसमे हर सुबह पैठे और दही चीनी खिलाया जाता है व हर उस शक्स को जो इन क्रियाओ में संलिप्त  रहता
पेपर के बाद हम सब अलग हो गए और एक बात थी जो दर्द देती थी। वो थी हमारे ना मिलने की उम्मीद,
पर वक्त आपके लिए आपसे ज्यादा सोच कर रखता है, और यही हुआ जब मैंने B.Sc के पहले ही दिन अपने कॉलेज में उन दोनो को अपने सामने देखा, उनमे से लंबी वाली लडकी पास आकर बोली, बेटा आसानी से तेरा पीछा ना छोड़ेंगे पर छोटी वाले वही लड़की जो खामोश रहकर सब कुछ कह जाती थी। पास खडी थी और मुस्करा रही थी,मुझे उससे प्रेम नही था पर मैं चाहता था की की उससा ही हो मेरी जिंदगी में कोई , जो बस इसी खामोशी से मेरी हर बात को समझ जाए,B.SC.  की क्लासो से ज्यादा हम अपनी मजाक की क्लास लेते थे, पेपर के समय वो छोटी सी लड़की मेरे पास बैठी थी और बार- बार मेरे मैं से देखने की कोशिश कर रही थी। पर उस असफलता के सिवा कुछ नही मिल रहा था। मैंने उसकी तत्परता को भांपते हुए। अपनी कॉपी के पन्ने उसकी तरफ कर दिये, वो मुस्करा कर लिखने लगी, मैंने अपने किसी और शैक्षिक कार्य को पूरा करने के लिए पहली साल के बाद BSc और शहर को छोड़ दिया, फिर जब भी कभी अपने शहर जाता तो वो दोनो मिल ही जाती थी,वो छोटी लड़की उसी खामोशी और मुस्कराहट के साथ वो हम सबसे मिलती थी।पर कहते हैं ना कि जिंदगी में हर चीज वैसी नही होती जैसा हम सोचकर रखते है क्युकी हम इस नाटकीय संसार के पात्र है और वो खुदा या ईश्वर इस संपूर्ण नाटक का  नाटककार है यह निर्णय वही लेता है कि किस पात्र की अवधि इस रंगमंच पर कितनी होगी। एक दिन जब उस लंबी लड़की से बात हैं कर रहा था तो मैंने पूछा और खामोश  बच्ची कहाँ है वो कुछ देर तो चुप रही फिर उसने बताया कि "यार वो नही रही", कुछ चीजे होती है जिन पर हमे ना चाहते हुए  भी भरोसा करना पडता है। कुछ ये भी ऐसा ही था मेरे लिए, दिमाग में गूँज रही थी उसकी वो खामोशी और मुस्कराहट जो शायद खो गयी थी इस अनंत आसमान में वापस ना आने वाली उम्मीद के साथ..... 
........#जलज 2011 2012,2013,
2014,और 2015 का कुछ वक्त हमने साथ में बिताया, एक साथी के रूप में, एक दोस्त के रूप में , और एक दूसरे के मेंटोर के रूप में, इन सालों में हमने जाना एक दूसरे को, जानी एक दूसरे की खामियां, और खूबियां ,पर कहते है ना वक्त बदलता है और फिर सब विपरीत होता है हमारे हालिया हालातों के, कुछ ऐसा ही हुआ उन दोनो लड़कीयो ने ट्यूशन आना बन्द कर दिया था। क्युकी बारहवी के पेपर आने वाले थे। ये बारहवी के पेपर, दोस्ती और सोलह साल वाले प्रेम की तेरहवी जैसे होते है। जिसमे हर सुबह पैठे और दही चीनी खिलाया जाता है व हर उस शक्स को जो इन क्रियाओ में संलिप्त  रहता है, 
पेपर के बाद हम सब अलग हो गए और एक बात थी जो दर्द देती थी। वो थी हमारे ना मिलने की उम्मीद,
पर वक्त आपके लिए आपसे ज्यादा सोच कर रखता है, और यही हुआ जब मैंने B.Sc के पहले ही दिन अपने कॉलेज में उन दोनो को अपने सामने देखा, उनमे से लंबी वाली लडकी पास आकर बोली, बेटा आसानी से तेरा पीछा ना छोड़ेंगे पर छोटी वाले वही लड़की जो खामोश रहकर सब कुछ कह जाती थी। पास खडी थी और मुस्करा रही थी,मुझे उससे प्रेम नही था पर मैं चाहता था की की उससा ही हो मेरी जिंदगी में कोई , जो बस इसी खामोशी से मेरी हर बात को समझ जाए,B.SC.  की क्लासो से ज्यादा हम अपनी मजाक की क्लास लेते थे, पेपर के समय वो छोटी सी लड़की मेरे पास बैठी थी और बार- बार मेरे मैं से देखने की कोशिश कर रही थी। पर उस असफलता के सिवा कुछ नही मिल रहा था। मैंने उसकी तत्परता को भांपते हुए। अपनी कॉपी के पन्ने उसकी तरफ कर दिये, वो मुस्करा कर लिखने लगी, मैंने अपने किसी और शैक्षिक कार्य को पूरा करने के लिए पहली साल के बाद BSc और शहर को छोड़ दिया, फिर जब भी कभी अपने शहर जाता तो वो दोनो मिल ही जाती थी,वो छोटी लड़की उसी खामोशी और मुस्कराहट के साथ वो हम सबसे मिलती थी।पर कहते हैं ना कि जिंदगी में हर चीज वैसी नही होती जैसा हम सोचकर रखते है क्युकी हम इस नाटकीय संसार के पात्र है और वो खुदा या ईश्वर इस संपूर्ण नाटक का  नाटककार है यह निर्णय वही लेता है कि किस पात्र की अवधि इस रंगमंच पर कितनी होगी। एक दिन जब उस लंबी लड़की से बात हैं कर रहा था तो मैंने पूछा और खामोश  बच्ची कहाँ है वो कुछ देर तो चुप रही फिर उसने बताया कि "यार वो नही रही", कुछ चीजे होती है जिन पर हमे ना चाहते हुए  भी भरोसा करना पडता है। कुछ ये भी ऐसा ही था मेरे लिए, दिमाग में गूँज रही थी उसकी वो खामोशी और मुस्कराहट जो शायद खो गयी थी इस अनंत आसमान में वापस ना आने वाली उम्मीद के साथ..... 
........#जलज