किसी रोज शायद मेरा असल वजूद इन्हीं पन्नो में फड़फड़ाता रह जाएगा और जला आएंगे सब मेरा सामाजिक नाप तौल से बना नकली मृत शरीर.... और करती रह जाएगी इंतेज़ार, सहस्त्र रूहुओं की तरह मेरी रूह भी,अपने मोक्ष का .... मोक्ष....