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श्रेष्ठ कर्म करना ही पुण्य है। एक गांव में हरिश्च

श्रेष्ठ कर्म करना ही पुण्य है।

एक गांव में हरिश्चन्द्र नाम का आदमी रहता था। हरिश्चन्द्र के एक सत्यवती नाम की पुत्री थी। हरिश्चन्द्र पेशे से एक गरीब मजदूर परन्तु एक सज्जन और ईमानदार 
आदमी था। उस समय के लोग काम करते समय लेट हो जाते तो वो रात 
किसी भी गावं मे रूक जाते थे। सत्यवती एक ज्ञानवान स्त्री थीं। सत्यवती
के घर कोई रूकता तो वो उसकी बिना किसी  स्वार्थ के सेवा किया करती। 
क्योंकि सत्यवती को दूसरों की सेवा व अच्छे कर्म करना पसन्दं था।
एक बार सत्यवती के पिता को किसी काम से बाहर जाना था , उसने अपनी बेटी से कहा की बेटी जल्दी से मेरे लिए दो रोटी बना दे , अगर देर होगी तो कही रात को रूक जामा। सत्यवती बोली बापू मैने तेरी रोटी आगे भेज दी है , तु जा । हरिश्चन्द्र बोलो बेटी अभी तो मैनै कहा तूने कद मे रोटी भेज दी। सत्यवती ने फिर वो ही जवाब दिया की बापू मैंने तैरी रोटी आगे भेज दी अर अब तु जा देर ना कर ।
अब हरिश्चन्द्र चल दिया अब शाम को आते वक्त देर होगी , हरिश्चन्द्र ने सोचा कही किसी गाव मे रूककर रात बितानी पडेगी। 
हरिश्चन्द्र एक गांव मे जा पहुंचा और एक आदमी से बोला भाई रात को रूकना  मेरा गाँव दूर है। वो आदमी कहने लगा भाई किस गाँव जावेगा, जब हरिश्चंद्र ने अपने गांव का नाम बताया तो वो आदमी 
बोला भाई वहां तो एक औरत है वो आने जाने वाले लोगों की 
बहुत सेवा करे । यह कहकर वो आदमी हरिश्चन्द्र के लिए चारपाई एवं रोटी ले आया एवं उसने हरिश्चन्द्र की उस रात खूब सेवा की। हरिश्चन्द्र ने सोचा बेटी सही कह री थी के तेरी रोटी आगे भेज दी। सुबह दिन निकलने पर उस आदमी को राम - राम बोलकर एवं धन्यवाद कर अपने घर पहुंचा। हरिश्चन्द्र अपनी बेटी से बोला मुझे नही पता था के तु इतना नेक काम करती है।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की जो मनुष्य निस्वार्थ होकर नेक कर्म एवं सहायता करता है , तो उसका  फल देर सवेर  जरूर मिलता । श्रेष्ठ कर्म करना ही पुण्य है।
श्रेष्ठ कर्म करना ही पुण्य है।

एक गांव में हरिश्चन्द्र नाम का आदमी रहता था। हरिश्चन्द्र के एक सत्यवती नाम की पुत्री थी। हरिश्चन्द्र पेशे से एक गरीब मजदूर परन्तु एक सज्जन और ईमानदार 
आदमी था। उस समय के लोग काम करते समय लेट हो जाते तो वो रात 
किसी भी गावं मे रूक जाते थे। सत्यवती एक ज्ञानवान स्त्री थीं। सत्यवती
के घर कोई रूकता तो वो उसकी बिना किसी  स्वार्थ के सेवा किया करती। 
क्योंकि सत्यवती को दूसरों की सेवा व अच्छे कर्म करना पसन्दं था।
एक बार सत्यवती के पिता को किसी काम से बाहर जाना था , उसने अपनी बेटी से कहा की बेटी जल्दी से मेरे लिए दो रोटी बना दे , अगर देर होगी तो कही रात को रूक जामा। सत्यवती बोली बापू मैने तेरी रोटी आगे भेज दी है , तु जा । हरिश्चन्द्र बोलो बेटी अभी तो मैनै कहा तूने कद मे रोटी भेज दी। सत्यवती ने फिर वो ही जवाब दिया की बापू मैंने तैरी रोटी आगे भेज दी अर अब तु जा देर ना कर ।
अब हरिश्चन्द्र चल दिया अब शाम को आते वक्त देर होगी , हरिश्चन्द्र ने सोचा कही किसी गाव मे रूककर रात बितानी पडेगी। 
हरिश्चन्द्र एक गांव मे जा पहुंचा और एक आदमी से बोला भाई रात को रूकना  मेरा गाँव दूर है। वो आदमी कहने लगा भाई किस गाँव जावेगा, जब हरिश्चंद्र ने अपने गांव का नाम बताया तो वो आदमी 
बोला भाई वहां तो एक औरत है वो आने जाने वाले लोगों की 
बहुत सेवा करे । यह कहकर वो आदमी हरिश्चन्द्र के लिए चारपाई एवं रोटी ले आया एवं उसने हरिश्चन्द्र की उस रात खूब सेवा की। हरिश्चन्द्र ने सोचा बेटी सही कह री थी के तेरी रोटी आगे भेज दी। सुबह दिन निकलने पर उस आदमी को राम - राम बोलकर एवं धन्यवाद कर अपने घर पहुंचा। हरिश्चन्द्र अपनी बेटी से बोला मुझे नही पता था के तु इतना नेक काम करती है।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की जो मनुष्य निस्वार्थ होकर नेक कर्म एवं सहायता करता है , तो उसका  फल देर सवेर  जरूर मिलता । श्रेष्ठ कर्म करना ही पुण्य है।
sharvan9940

Sharvan

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श्रेष्ठ कर्म करना ही पुण्य है। #कहानी