दग्ध-हृदय तनु विरह तप्त आकुल व्याकुल युगल नयन प्रेम-पाश जटिल बंधन हिय न जानत मुक्ति तारण काहे प्रिय यूँ तड़पावत मोय प्रेमाग्नि चहुँ दिसि घेरत मोय काल सम काल बीत रह्यो अब आवहु प्रियतम कब जाने कोय नैन निसि-दिवस झरत यों हि सावन मास झरी लागों ज्यों हि अकथ कथा व्यथा बांचें कौन हृदय-पट खोल झांकत कौन सुनहु सखि कुछ करू उपाय प्रिय तक संदेसो दे पहुँचाय आवहि जात साँस धीमि अब मोरि प्रिय को देखन अटकी इक डोरी हिय मांहि लाज बहुत समेटि अब नाहि चुप रहियें कंत को देखि आ जाहिं बस इक बारि प्रिय मोरे प्राण तजहिं ताकि चरण को छूहहिं! 🌹 #mनिर्झरा हिन्दी साहित्य में श्रृंगार रस 'रसराज' कहा जाता है यानि रसों का राजा!श्रृंगार रस के संयोग और वियोग दो पक्ष होते हैं!प्रस्तुत रचना श्रृंगार के वियोग भाव को दर्शा रही है जिसमें प्रेमिका या पत्नी अपने प्रेमी या पति को याद करते हुए अपनी सखी या सहेली से अपनी वियोग दशा का वर्णन कर रही है! 🌹🌹🌹 दग्ध-हृदय तनु विरह तप्त आकुल व्याकुल युगल नयन