कविता :: जीवनसंगिनी में नदी हूँ अगर तुम जलधारा हो तो स्वागत है, विशाल वृक्ष मैं जीवन स्वरूप तुम गर मद्धम पवन हो तो स्वागत है, इच्छा हो या अनिच्छा , हे मेरी जीवनसंगिनी में वक़्त हूँ