मिलेगी मंज़िल तुम्हें ए रहगुज़र! बताओ उस पार जाना कहां है? न पूछो दर-ब-दर फिर भटकता मिलूंगा, बसर के सिवा कुछ कमाना कहां है? न लो कोई इम्तिहाँ रस्म-ए-उल्फ़त से, फसीं जां क़फ़स से छुड़ाना कहां है? क्या होगा हसर न पूछो हलक से, मुरौवत का अब जमाना कहां है ? शजर से सुनी होंगी कई दास्तान-ए-ख़िज़ां, कुर्बतों का कोई अब फ़साना कहां है? कहीं गुम न होना तुम मिरे रहबर! फ़क़त इस फलक का ठिकाना कहां है? मिले शाम खुदा कोई गर्द-ए-मलाल में, बताओ इस शहर को बुलाना कहां है? ~©Anjali Rai रहगुज़र- रास्ता / path बसर- जीवन निर्वाह / live, exist रस्म-ए-उल्फ़त - tradition of Love क़फ़स - पिंजरा / कैदखाना कुर्बत - नजदीकी / निकट संबंध दास्तान-ए-ख़िज़ां - Story of Autumn(पतझड़) रहबर - मार्गदर्शक / गर्द-ए-मलाल - cloud of regret