कर्म इन्सान का हो बस इन्सानियत पाने के लिए, बनाया खुदा ने उसको दिलों में बस जाने के लिए। बेबसी पर किसी की तरस आया नहीं जिनको, बेबस हुए वे एक वक्त में गिड़गिड़ाने के लिए l ठोकरों में अपनी जो रखते थे जमाने को, मजबूर हुए वे जमाने में लड़खड़ाने के लिए l गुलाम समझा जिसने दुनिया की हर शै को, विवश हुए वे दुनिया में हाथ फैलाने के लिए l फरिश्ता नैतिकता का जो समझते थे खुद को, सर झुकाये हैं वे दागदार दामन छिपाने के लिए l ....... सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 'वक्त' सबको 'वक्त' दिखाता जरूर है.....