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यादों का क़िस्सा खोलूँ  तो कुछ लोग बहुत याद आतें है

यादों का क़िस्सा खोलूँ  तो कुछ लोग बहुत याद आतें हैं। 
 मै हँसते -हँसते रो लू  तो  कुछ लोग बहुत याद आते हैं। 
घर के दहलीज के बाहर के ,जब वो किस्से याद आते है। 
 दिल में हिचकोले उठते हैं  ,और आंखे  नम हो जाते है। 
वो कॉलेज में कैंटीन के समोसे भी अच्छे लगते थे।  
जब  एक समोसे के ऊपर चारो  दोस्त लड़ने लगते थें ।
यादों का क़िस्सा खोलूँ  तो कुछ लोग बहुत याद आतें हैं।  
मै हँसते -हँसते रो लू  तो  कुछ लोग बहुत याद आते हैं। 

© धनेश मौर्य
यादों का क़िस्सा खोलूँ  तो कुछ लोग बहुत याद आतें हैं। 
 मै हँसते -हँसते रो लू  तो  कुछ लोग बहुत याद आते हैं। 
घर के दहलीज के बाहर के ,जब वो किस्से याद आते है। 
 दिल में हिचकोले उठते हैं  ,और आंखे  नम हो जाते है। 
वो कॉलेज में कैंटीन के समोसे भी अच्छे लगते थे।  
जब  एक समोसे के ऊपर चारो  दोस्त लड़ने लगते थें ।
यादों का क़िस्सा खोलूँ  तो कुछ लोग बहुत याद आतें हैं।  
मै हँसते -हँसते रो लू  तो  कुछ लोग बहुत याद आते हैं। 

© धनेश मौर्य