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एक टक ताकती आँखें कितना सब्र संभाल पाएंगी, पलकों

एक टक ताकती आँखें
कितना सब्र संभाल पाएंगी, 
पलकों के गिरते ही टूट जाता है
गिले गाल रून्धा गला, 
भाव से भरे अश्रु, 
अभी भी कुछ धीरज है शायद, 
मौन अधर, व्याकुल तन मन, 
अधरों के खुलते ही, 
शैलाब सा आता है, 
हरकुछ बिखर जाता है
थोड़ा सा बहता है ज्यादा भर जाता है
दुःख, मन बैठा जाता है
और छा जाता है बस मौन
वही तन्हाई अथाह दर्द

©AshuAkela
  #Sawera jindagi ka sawera
ashuakela5416

AshuAkela

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#Sawera jindagi ka sawera #लव

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