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तेरी वो चाहत थी,जो मजबूर करती थी मुझे अपनों से दग

तेरी वो चाहत थी,जो मजबूर करती थी 
मुझे अपनों से दगा करने के लिए,
पागल थी तेरे इश्क़ में,जो समझ ना सकी 
करुणामय माँ-पिता के निःस्वार्थ प्रेम को 
भूल हुई मुझसे शायद उम्र की वो चेष्टा थी,
स्वीकृति की प्रतिक्षा करुँगी उनकी,तभी तुझे मैं स्वीकार करुँगी।।  📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता:-119 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 4-6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
तेरी वो चाहत थी,जो मजबूर करती थी 
मुझे अपनों से दगा करने के लिए,
पागल थी तेरे इश्क़ में,जो समझ ना सकी 
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भूल हुई मुझसे शायद उम्र की वो चेष्टा थी,
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ashagiri4131

Asha Giri

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