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बिस्तर की सिलवटों में गहिरे राज़ छु़पे थे सरेआम जा

बिस्तर की सिलवटों में गहिरे राज़ छु़पे थे
सरेआम जा़हिर वो आज हुए है
करवट बदल बदल के आंखो में रात कटी है

शब्दवेडी
 #१८/३६५
बिस्तर की सिलवटों में गहिरे राज़ छु़पे थे
सरेआम जा़हिर वो आज हुए है
करवट बदल बदल के आंखो में रात कटी है

शब्दवेडी
 #१८/३६५