जहाँ जब बोलना था होठों को हम सी लिए साहब। ज़माने की फ़िकर थी घूँट कड़वे पी लिए साहब।। बिना क़ीमत चुकाए आती जिसके हिस्से आज़ादी। वही आज़ादी आती साथ बर्बादी लिए साहब।। वहाँ आएगी नौबत एक रोटी चार हिस्से की। जहाँ पर जा रहे हम अपनी आबादी लिए साहब। ज़हर आब-ओ-हवा मिट्टी में बोया किसने ये आख़िर हिमाक़त घूमती है प्रश्न बुनियादी लिए साहब। ©Santosh Pathak प्रश्न बुनियादी #WorldAsteroidDay