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मेरी चुप्पी को न जाने क्या वो समझा था, बस उस रोज़ क

मेरी चुप्पी को न जाने क्या वो समझा था,
बस उस रोज़ के बाद सब कुछ बदल गया,
वो.. मैं.. हम.. सब कुछ बिखर गया
(कैप्शन में पढ़े)   वो कभी मुझसे कोई सवाल नहीं किया करता था। जब कभी भी किया तो सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझे थोड़ा सा जानने के लिए कुछ पूछ लेता था।

  पर उस रोज़ न जाने मज़ाक करते करते बातें इतनी गहराती गई। कभी सोचा भी न था कि उससे ऐसी भी बातें होंगी। जो कभी महसूस ना हुआ था, वो उस आधी रात में छुपे उस मंज़र पर महसूस हुआ। वो अजनबी होकर भी अपना सा लगने लगा था। 

  चंद रातों की बातों ने न जाने क्या जादू कर दिया था, कि उसके ना होने पर, उसकी कमी महसूस हुआ करती थी।अब तो जैसे रूटीन सा हो गया था। उसके 'गुड नाईट' पे मेरी रात होती थी और 'गुड़ मॉर्निंग' से सुनहरी सुबह। मैं बरसों बाद खुश थी। 

  ऐसा लग रहा था, कि मिलों दूर भी कोई मेरी परवाह खुद से ज़्यादा करता है। 'पागल' कहता था मुझे। कभी ईशारों से, कभी बातों को घुमा के वो अपना हाल-ए-दिल बयां करता गया। और मैं सब कुछ समझ के भी अंजान बनी रहती थी। अच्छा लगता था उसे परेशान करना। कभी कभार तो वो जूठा मुठा नाराज़ होने की एक्टिंग करता था। और मैं उसे मनाने में लग जाती। फिर जब उसे लगता कि रो दूंगी, तो झट से हँस पड़ता, कहता मुझसे,' मज़ाक कर रहा हूँ, तुम मज़ाक नहीं समझती क्या?' ' तुम इतनी भोली क्यूँ हो मेरी जान?'
मेरी चुप्पी को न जाने क्या वो समझा था,
बस उस रोज़ के बाद सब कुछ बदल गया,
वो.. मैं.. हम.. सब कुछ बिखर गया
(कैप्शन में पढ़े)   वो कभी मुझसे कोई सवाल नहीं किया करता था। जब कभी भी किया तो सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझे थोड़ा सा जानने के लिए कुछ पूछ लेता था।

  पर उस रोज़ न जाने मज़ाक करते करते बातें इतनी गहराती गई। कभी सोचा भी न था कि उससे ऐसी भी बातें होंगी। जो कभी महसूस ना हुआ था, वो उस आधी रात में छुपे उस मंज़र पर महसूस हुआ। वो अजनबी होकर भी अपना सा लगने लगा था। 

  चंद रातों की बातों ने न जाने क्या जादू कर दिया था, कि उसके ना होने पर, उसकी कमी महसूस हुआ करती थी।अब तो जैसे रूटीन सा हो गया था। उसके 'गुड नाईट' पे मेरी रात होती थी और 'गुड़ मॉर्निंग' से सुनहरी सुबह। मैं बरसों बाद खुश थी। 

  ऐसा लग रहा था, कि मिलों दूर भी कोई मेरी परवाह खुद से ज़्यादा करता है। 'पागल' कहता था मुझे। कभी ईशारों से, कभी बातों को घुमा के वो अपना हाल-ए-दिल बयां करता गया। और मैं सब कुछ समझ के भी अंजान बनी रहती थी। अच्छा लगता था उसे परेशान करना। कभी कभार तो वो जूठा मुठा नाराज़ होने की एक्टिंग करता था। और मैं उसे मनाने में लग जाती। फिर जब उसे लगता कि रो दूंगी, तो झट से हँस पड़ता, कहता मुझसे,' मज़ाक कर रहा हूँ, तुम मज़ाक नहीं समझती क्या?' ' तुम इतनी भोली क्यूँ हो मेरी जान?'
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वो कभी मुझसे कोई सवाल नहीं किया करता था। जब कभी भी किया तो सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझे थोड़ा सा जानने के लिए कुछ पूछ लेता था। पर उस रोज़ न जाने मज़ाक करते करते बातें इतनी गहराती गई। कभी सोचा भी न था कि उससे ऐसी भी बातें होंगी। जो कभी महसूस ना हुआ था, वो उस आधी रात में छुपे उस मंज़र पर महसूस हुआ। वो अजनबी होकर भी अपना सा लगने लगा था। चंद रातों की बातों ने न जाने क्या जादू कर दिया था, कि उसके ना होने पर, उसकी कमी महसूस हुआ करती थी।अब तो जैसे रूटीन सा हो गया था। उसके 'गुड नाईट' पे मेरी रात होती थी और 'गुड़ मॉर्निंग' से सुनहरी सुबह। मैं बरसों बाद खुश थी। ऐसा लग रहा था, कि मिलों दूर भी कोई मेरी परवाह खुद से ज़्यादा करता है। 'पागल' कहता था मुझे। कभी ईशारों से, कभी बातों को घुमा के वो अपना हाल-ए-दिल बयां करता गया। और मैं सब कुछ समझ के भी अंजान बनी रहती थी। अच्छा लगता था उसे परेशान करना। कभी कभार तो वो जूठा मुठा नाराज़ होने की एक्टिंग करता था। और मैं उसे मनाने में लग जाती। फिर जब उसे लगता कि रो दूंगी, तो झट से हँस पड़ता, कहता मुझसे,' मज़ाक कर रहा हूँ, तुम मज़ाक नहीं समझती क्या?' ' तुम इतनी भोली क्यूँ हो मेरी जान?' #yqbaba #yqdidi #drg_diaries #मेरो_चुप्पी #खो_दिया_सब