हज़ार ख़्वाहिशों का बोझ लिए चलते हैं, नजर में तुझको बसाकर के हम निकलते हैं हुई खता जो हमसे हमको माफ ना करना तुम्हें ही देखने को घर से हम निकलते हैं । - Akash Rajpoot #tumhe hi dekhne ko ghar se ham nikalte hain