शीर्षक प्रश्न
विधा स्वरचित भाव☹️
जाने क्यों मन में एक अजीब सी उलझन भरी
दुविधा होती है,🥹
क्यों हमसे सबको इतनी शिकायत शिकवा
नफ़रत होती है अपनों के बदलते मिजाज
अक्सर हम समझ न पातीं हैं🙄,
बहुत बहुत देर तक सोचते रहना हमारा क्यों
हमसे सब इतना दूर भागते हैं,☹️
हर रिश्ता जुड़ा परिवार से आखिर क्यों हमसे
कटा कटा सा रहता है,😔
बोझ भरा जीवन मिला ऐसा ईश्वर से तो हमारी
क्या ग़लती है,💔
नहीं बदला भाग्य हमारा तो इसमें हमारी क्या
गलती है,💔
एक कोने की बन गई ज़िन्दगी तो इसमें हमारी
क्या ग़लती है,😞
कष्टकारी काया सहारा मांगे तो इसमें हमारी
क्या ग़लती है,☹️
सच बोलन निस्वार्थ भावी खुद्दारी है हममें तो
इसमें हमारी क्या ग़लती है,😔
कभी कभी तो हमें खुद से ही नफ़रत होने
लगती है,😡
सच में समाज अपने घर से ही शुरू होता है
क्यों सब हमसे किनारा रखते हैं क्या सच में
तरु इतनी ज्यादा बुरी है इतनी ज्यादा..!
😥🥹☹️☹️
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