मशरुक थे हम अपनी ही जिन्दगी में, जब दर्द उठा तो जाना। देखा जब नजर उठा कर हमने, दर्द क्या है ये पहचाना। लगता है मुफ्त की जिन्दगी जी रहें थे हम, ऐसे नहीं है अपनी पहचान बनाना। ठोकरें तो संभलने के लिए लगती हैं, मुश्किलों से नहीं है घबराना। सीखने को बहुत देती है जिन्दगी, हमें हर वक्त है सीखते जाना।। मशरूक था मैं...........!