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बचपन ऐसा लग रहा है जैसे बचपन दौड़ के वापस आना चाह

बचपन
ऐसा लग रहा है जैसे बचपन दौड़ के वापस आना चाह रहा है,
आज अपने बचपन के घर को देखा,
घर तो नहीं अब एक छोटा सा खंडर है,
पर बहुत सी यादों से भरा हुआ है इसलिए फिर भी लगता सुंदर है।

अब बचपन मेरे सामने आकर खड़ा हुआ है,
पुराने घर के पास मंदिर देखा जहां दादी के साथ जाया करते थे,
बचपन ने मुझसे कहा कि चल अंदर चलते हैं भगवान से तो मुलाकात कर लेंगे पर शायद दादी भी वहां मिल जाए,
ख्याल थोड़ा बेतुका सा लगा पर फिर भी सोच रहे थे चलो एक बार अंदर जाकर आए।

अब बचपन मुझे देख कर मुस्कुरा रहा है,
आज पापा को साथ लेकर उस पुरानी दुकान तक गए थे,
जहां से मम्मी ने बहुत सी टॉफीया दिलवाई थी,
बस फिर क्या था खुदके पास बटवा होने के बावजूद भी हमने कहा रुको 
पापा आज फिर हमें कुछ चॉकलेट दिलवा दो।

अब बचपन ने मेरा हाथ पकड़ लिया है,
वापिस आते वक्त रास्ते में खूबसूरत सी गुलाबी साइकिल देखी,
मेरे अंदर के बच्चे ने बाहर आने की ठानी थी, 
उसे स्कूटर छोड़कर साईकिल लेकर हवाओं के से संग बचपन वाली बातें करनी थी।

मैंने पूछा बचपन से क्या कर रहा है आज तू,
उसने कहां तू बार-बार कहता है कि मैं चला गया पर जरा ध्यान से देख अपने अंदर,
मैं तो वही हूं, जरा अपनी बड़ी वाली सोच लगा तो तू शायद समझ पाए,
मैं तुझे नहीं पर तु मुझे छोड़ कर आगे चला गया। चलो आज बचपन की गलियों में घूमने चलते हैं।
#बचपन #childhood #happymemories #happydays #tensionfreelife  #hindipoetry #yqdidi #yqbaba
बचपन
ऐसा लग रहा है जैसे बचपन दौड़ के वापस आना चाह रहा है,
आज अपने बचपन के घर को देखा,
घर तो नहीं अब एक छोटा सा खंडर है,
पर बहुत सी यादों से भरा हुआ है इसलिए फिर भी लगता सुंदर है।

अब बचपन मेरे सामने आकर खड़ा हुआ है,
पुराने घर के पास मंदिर देखा जहां दादी के साथ जाया करते थे,
बचपन ने मुझसे कहा कि चल अंदर चलते हैं भगवान से तो मुलाकात कर लेंगे पर शायद दादी भी वहां मिल जाए,
ख्याल थोड़ा बेतुका सा लगा पर फिर भी सोच रहे थे चलो एक बार अंदर जाकर आए।

अब बचपन मुझे देख कर मुस्कुरा रहा है,
आज पापा को साथ लेकर उस पुरानी दुकान तक गए थे,
जहां से मम्मी ने बहुत सी टॉफीया दिलवाई थी,
बस फिर क्या था खुदके पास बटवा होने के बावजूद भी हमने कहा रुको 
पापा आज फिर हमें कुछ चॉकलेट दिलवा दो।

अब बचपन ने मेरा हाथ पकड़ लिया है,
वापिस आते वक्त रास्ते में खूबसूरत सी गुलाबी साइकिल देखी,
मेरे अंदर के बच्चे ने बाहर आने की ठानी थी, 
उसे स्कूटर छोड़कर साईकिल लेकर हवाओं के से संग बचपन वाली बातें करनी थी।

मैंने पूछा बचपन से क्या कर रहा है आज तू,
उसने कहां तू बार-बार कहता है कि मैं चला गया पर जरा ध्यान से देख अपने अंदर,
मैं तो वही हूं, जरा अपनी बड़ी वाली सोच लगा तो तू शायद समझ पाए,
मैं तुझे नहीं पर तु मुझे छोड़ कर आगे चला गया। चलो आज बचपन की गलियों में घूमने चलते हैं।
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