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वो जमाना अलग था ये कहकर आज हम न जाने कितनी बातों

वो जमाना अलग था 
ये कहकर आज हम न जाने
कितनी बातों को टाल दिया करते हैं।
और आज अपनी मनमानियां करते हैं
चाहे वो सही हो या गलत।
तब की बात और थी
ये कहकर आज हम न जाने
क्यूं सच्चाईयों से मुंह फेर लिया करते हैं!
ये क्यों  भूल गए हम की एक वो जमाना था,
 जब बड़ों से अदब से पेश आते थे, 
मजाल न थी कि बुजुर्गों की बात काट सके! 
दोस्तों से वादे निभाने के लिए किए जाते थे,
दिखावे से कोसो दूर ,परिवार में सब एक दूसरे के लिए जिये जाते थे।
इस जमाने से अच्छा तो वो गुजरा जमाना ही भला था, जहां त्योहारों में दुश्मनों को भी गले लगा लिए जाते थे।

©nita kumari
  
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