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वक़्त ने किया दगा कैसा मुकद्दर हो गया तराशते तरा

वक़्त ने किया दगा 
कैसा मुकद्दर हो गया 
तराशते तराशते ,,,,बुतों को 
मै खुद ही पत्थर हो गया 
मै चला था बाँटने ..खुद 
को देखो ओरों में ....
दब के रह गयी आह मेरी 
दूर कहीं शोरों में 
दिया साथ ना उजियारों ने 
ना आसमां के सितारों ने ..
सजाते सजाते ओरों का गुलशन ..
घर मेरा बंजर ह
वक़्त ने किया दगा 
कैसा मुकद्दर हो गया 
तराशते तराशते ,,,,बुतों को 
मै खुद ही पत्थर हो गया 
मै चला था बाँटने ..खुद 
को देखो ओरों में ....
दब के रह गयी आह मेरी 
दूर कहीं शोरों में 
दिया साथ ना उजियारों ने 
ना आसमां के सितारों ने ..
सजाते सजाते ओरों का गुलशन ..
घर मेरा बंजर ह