वो आखिरी मुलाकात भी क्या मुलाक़ात थी होंठों पे कपकपी आँखों में कुछ नमी थी साँसें भी रुकी रुकी धड़कन कुछ बढ़ी थी मैं खामोश बेवश था वो भी चुप खड़ी थी आख़िरी मुलाक़ात दिल दहला रही थी गले लगकर वो आहें भर रही थी बाजी मैंने भी जान की लगी थी समाज की चक्की में आहुति हम दोनों की पड़ी थी वो जुदाई की मुलाक़ात आख़िरी विदाई की मुलाक़ात थी। प्रतियोगिता ०८ #vkpoetry #collabwithvkpoetry 🏵️ कैप्शन को ध्यानपूर्वक पढ़कर रचना करें 👇 ~ आप सभी का स्वागत है प्रतियोगिता में।