नहीं है मुन्हसिर इस बात पर यारी हमारी । कि तू नाहक करता रहे तरफदारी हमारी । मगर अच्छा तो ये होता कि हम इक साथ रहते । भरी रहती तेरे कपड़ों से अलमारी हमारी । # jawad sheikh# ©Azeem Khan #jawad sheikh poetry#