Nojoto: Largest Storytelling Platform

ये कहानी है ममतामयी उस माँ की ,जो अपनी ममता निस्व

 ये कहानी है ममतामयी उस माँ की ,जो अपनी ममता निस्वार्थ बाँटती है,
देती है पुष्प लता  अपनी संतानों को, और काँटे अपने लिए  छाँटती   है,

कहते  हैं  माँ   प्रकृति  उसे , जो लुटाती रही अपना सर्वस्व हम सब पर ,
बदले    में     हमसे     उस  ममतामयी   माँ  ने ,कहाँ कुछ माँगा है मग़र,

मग़र     हमनें     भी   अत्याचार    की  ,    सारी   सीमाएं ही तोड़ दी,
विध्वंशता      की     सारी    आँधियाँ ,    उस माँ की तरफ़ ही मोड़ दी ,

भरना पड़ेगा हमें ही इसका खामियाजा ,हमने तनिक ना विचार किया,
पाट दिए सब नाले बन्ध , सब वृक्ष लताओं  को  भी तहस नहस किया,

बच्चो    को     श्राप     भी    क्यूँ   कर   देती,  वो बेचारी माँ जो ठहरी,
हर    दर्द     अपने     ज़िस्म    पर सहती रही, मग़र चोट लगी थी गहरी,

रोती     रही       बिलखती       रही ,   मग़र   दया न हमको आई थी,
हमारी  ही   भूल     का   परिणाम था ,जो मची दुनिया मे तबाही थी ।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #माँप्रकृति 
#एककहानी