अक्सर बैठ जाता हूँ अकेला मैं हर शाम खुले आसमान के तले, बस इसी उम्मीद में कि काश टूटे इक तारा और जो चाहूं मैं मांग सकूं। मांग सकूं मैं तुमको या फिर खींच सकूं ध्यान तुम्हारा, बेशक मुझे ज्ञात है है ये अंधविश्वास, पर नहीं! विश्वास से ज्यादा एक आस है एक बेहतर भविष्य, जहां तुम हो, मैं हूँ और हो आशीर्वाद महादेव का एक समझ हो, सामंजस्य हो। प्रेम के निर्मल बंधन में बंधे स्वतंत्र मैं और स्वतंत्र तुम। समर्पित मैं, निःस्वार्थ तुम पर नहीं, ये तो दिवास्वप्न है मेरा शायद अभी दूर है मैं से हम तक का ये सफर लेकिन अब भी बैठा हूँ मैं खुले आसमान के तले बस इसी उम्मीद में कि काश टूटे इक तारा और जो मैं चाहूँ मांग सकूं। @मोह_it ©मोहित बिष्ट मोनू #Life #Love #Imagination #Ka #in #na #mukhota