बोली रोज़-रोज़ लिखते हो... कुछ कमाई भी होती हैं? मखां नहीं!! बस सुकुन मिल जाता है; जो पैसे वालों के पास नहीं है। बोली ठीक है,पर पेट भरने के लिए भी तो कुछ चाहिए? मखां मेरा पेट इतना बड़ा नहीं है, कि मेहनत कि कमाई कम पड़ जाए। बोली; मेहनत कहा करतें हो? मखां लिखने में। तो कमाते क्या हो? सुकुन ,सुकुन, सुकुन..... ©Ashin Kalet boli roj roj.. #ashinwriter #writer