गम न था बेहिसाब खामियों का ज़िंदगी में, मौजूदगी तेरी मुआवजा भर देती थी, अब जब तूने ही जंग छेड़ दिया आलम में, चंद साँसों की मोहलत भी भारी लगती है।। #विशेषप्रतियोगिता #rzलेखकसमूह #लेखनसंगी #collabwithrestzone #restzone #rztask302 #YourQuoteAndMine Collaborating with Nivedita Nonhare