सागर की गहराई को जैसे कोई माप नहीं पाया है ऎसे ही गुरुदेव आपमें ज्ञान का भंडार समाया है इस युग के तीर्थंकर हो तुम महावीर की छाया है आवाहन करके आज तुम्हें अपने ह्रदय समाया है हे संत शिरोमणि तेरे गुण हरदम मैं तो गांऊगी अपने इस अंतर में गुरुवर तेरी तस्वीर बसाऊंगी मेरा अंतर मन बुला रहा हे गुरुवर दर्श दिखा देना मेरे मानस में हे गुरुवर तुम ज्ञान की गंगा बहा देना भव वन में भटक रही हूं मैं तुम अपनी शरण बुला लेना तेरी शिष्या हूं मैं गुरुवर निजआत्मज्योति प्रगटा देना मुस्काते धीरे धीरे से गुरुवर तुम मुझसे कह देना तू मेरी शिष्या है बेटी हरदम में तेरे संग हूं ना अरिहंतिका जैन गुरुदेव