ग़ज़ल इधर आफ़ात में था,उधर वो ताक में था, ख़ुदा जाने! कौन किसके फ़िराक में था। वो जो छोड़ कर तन्हां, गुमनाम हो गया, यक़ीनन वो सख्स मीरे खिलाफ़ में था । मेरी जां पर बनी तब बात समझ आयी, कि बा-पाँख का परिंदा कैसे साख में था। बाद मरने के भी,आँखें खुली की खुली रहीं। सय्याद अबतलक वो सख्स मेरी आँख में था।। खुमां-ए-इश्क सर मेरे इसकदर था अज़ीम। कि उसको ख़बर मिलने तक,मैं ख़ाक में था।। one way