हर शाम अंधेरे में ढल कर, हर रोज फिर से उगता है सूरज। एक दिन चमकोगे तुम भी यार , बस हृदय में रखो थोड़ा धीरज। जब खेत बंजर तुमसे आस रखेगा, जब हरियल पक्षी खातिर तुम्हारे, अपनी अधूरी प्यास रखेगा। उस दिन तुम भी खुद को कुर्बान करना। इस जहां के बाशिंदों पर एहसान करना। होगी तुम्हारी भी चारो दिशाओं में जय जयकार। बस हृदय में थोड़ा धीरज रखो यार। ....#जलज कुमार ©JALAJ KUMAR RATHOUR हर शाम अंधेरे में ढल कर, हर रोज फिर से उगता है सूरज। एक दिन चमको के तुम भी यार , बस हृदय में रखो थोड़ा धीरज। जब खेत बंजर तुमसे आस रखेगा, जब हरियल पक्षी खातिर तुम्हारे, अपनी अधूरी प्यास रखेगा। उस दिन तुम भी खुद को कुर्बान करना।