यादों की भारी तकरीर के पोथे लिए एक किताब है जो मन में रह गया है, दूर कहीं अब नहीं का क्या सवाल करना, जो ख़त्म था वो अब चला गया है । लोगों को जो रास न था वो अब गल चुका है, वो घर भी अब घर नहीं जिसमें घर सबका बन चुका है । घर में हो के भी मुझको, घर की याद आती है!... #घरकीयाद #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi