जब पूछ बैठता है कोई हाल मेरा सहसा सोच में डूब कर मैं सागर के तल में चला जाया करता हूँ सोचकर इतना ही कह पाता हूँ कि अगर ख़ुद का ठीक होना ही है तो हर घड़ी तो मैं ठीक रहता हूँ! लेकिन खुशियों के दरवाज़े बंद हो जैसे ईश्वर भी सम्भवतः अवकाश पर है! कोई अपना,अपनों का अपना कई वट वृक्ष गिरकर धराशाई होते जाते है तो नई कोपलें उग आने से पहले ही टूट गई इतिहास बनने से पहले ही अतीत हो गया! कर पाएगा क्या कोई इनकी भरपाई! जवाब क्या दूँ अब जब बचा न हो कुछ हो सकता है एक दिन सब ठीक हो जाएगा लेकिन तैमूर और नादिरशाह के हमलों के बाद उजड़ी दिल्ली जैसी ही कोई तस्वीर वीभत्स भयावह और बिना अपनों के जीना ही जीना नही होगा तब!! खुशियों का दरवाज़ा(कविता) जब पूछ बैठता है कोई हाल मेरा सहसा सोच में डूब कर मैं सागर के तल में चला जाया करता हूँ सोचकर इतना ही कह पाता हूँ कि अगर ख़ुद का ठीक होना ही है तो हर घड़ी तो मैं ठीक रहता हूँ! लेकिन खुशियों के दरवाज़े बंद हो जैसे