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हिन्दी एक ऐसी भाषा है, इसमें छिपी सरल अभिलाषा है ।

हिन्दी एक ऐसी भाषा है,
इसमें छिपी सरल अभिलाषा है ।
कवि जो रचना है मुझ रस भीन,
ज्यों स्वच्छ जलाशय रमती मीन ।।
मत पूछ नियम हिन्दी हैं क्या,
अक्षर अरु शब्द सियन कैसा ।
निज हृदय बेध कर जाना है,
भावों को मात्र सजाना है ।। "ये कहानी मेरे स्वप्न की है जो मैंने गत रात्रि को देखी थी.. ये कोई काल्पनिक गद्य नहीं है।"

मैं किसी ट्रेन में सफर कर रहा था। गंतव्य के बारे में ठीक से कुछ याद नहीं है। कई और लोग बैठे हुए थे जिनमें से मेरे ये लेखक मित्र भी थे - RUPAL SINGH और रश्मि बरनवाल "कृति"..

सफर की बढ़न्त में अचानक रूपल जी ने मुझसे पूछा, "हिन्दी आपको कैसी लगती है?"
इसके उत्तर में मैंने जो कविता उन्हें कही, वही इस रचना की प्रथम चार पंक्तियाँ हैं।

मेरे ऐसा कहते ही सब कुछ थोड़ी देर के लिए शान्त सा हो गया।
हिन्दी एक ऐसी भाषा है,
इसमें छिपी सरल अभिलाषा है ।
कवि जो रचना है मुझ रस भीन,
ज्यों स्वच्छ जलाशय रमती मीन ।।
मत पूछ नियम हिन्दी हैं क्या,
अक्षर अरु शब्द सियन कैसा ।
निज हृदय बेध कर जाना है,
भावों को मात्र सजाना है ।। "ये कहानी मेरे स्वप्न की है जो मैंने गत रात्रि को देखी थी.. ये कोई काल्पनिक गद्य नहीं है।"

मैं किसी ट्रेन में सफर कर रहा था। गंतव्य के बारे में ठीक से कुछ याद नहीं है। कई और लोग बैठे हुए थे जिनमें से मेरे ये लेखक मित्र भी थे - RUPAL SINGH और रश्मि बरनवाल "कृति"..

सफर की बढ़न्त में अचानक रूपल जी ने मुझसे पूछा, "हिन्दी आपको कैसी लगती है?"
इसके उत्तर में मैंने जो कविता उन्हें कही, वही इस रचना की प्रथम चार पंक्तियाँ हैं।

मेरे ऐसा कहते ही सब कुछ थोड़ी देर के लिए शान्त सा हो गया।