जल रहा हूं यूं अब भी तूफ़ानों में.. चिता जलती हो जैसे बेताब सी श्मशानों में.. होती है तपिश अब हर इक की बात में.. डूबता क्यों हूं आखि़र दर्द अब झूठी सी मुस्कानों में? समझते है सभी यूं ही तिली कि चिंगारी सी.. कमज़ोर हूं मैं आज भी अनचाहें से हालातों में? अपनी खुदी की ही समझ आती है क्या? ना जाने समझता है क्या मुझे मरे हुए कुछ इंसानों ने? जहां की कुछ अजीोग़रीब रीति देखता हूं.. तोड़ दी है सदाकत ने दम झूठे कुछ बेईमानों से? मैं कौन हूं.. क्यों हूं ..कहां आ गया हूं.. उलझ गया हूं इस युग के नापाक से झूठे बातों में? world isn't a bad place because of the evil..but because of silence of so called good