जनहित की रामायण - 79 आये दिन जाते है हम सरकार में अपने अपने काम से । दफ्तरों में दिखता सबकुछ अधूरा जनसुविधा के नाम पे ।। बातें बनाते सरकारी महकमों को दोष देने की अक्सर । 'कोई नहीं सुनेगा' सोच के छोड़ते शिकायत का अवसर ।। बहुत बार कुछ नहीं होता इक्के-दुक्के प्रयास से । बारंबार ध्यान दिलाएं, दुनिया टिकी है आस पे ।। 'कर' रुप में हम ही भरते रक़म सरकारी कोष में । उपरी चढावा भी चढ़ाते, जल्दबाज़ी के जोश में ।। कभी-कभी डरते भी रहते अफसर हो न जाये नाराज़ । कहीं बिगाड़ न दे वो हमरे भावी कामकाज ।। हर कोई अपनी अपनी समस्याओं में घिरा है । इसीलिये जनहित का ढ़ोल नहीं बज पा रहा है ।। मेरा परिवार गत 24 वर्षों से जनहित जाप करता है । हमरी आँखों में जनहित स्वाह होता खटकता है ।। काम हो जाने पर असीम आनन्द मिलता है । अफ़सोस अक्सर सक्षम भी हक के लिये नहीं लडता है ।। परिणामस्वरूप बढ़ती जाती नेता अफसर की मनमानी । चलती रहती सालों साल जनहित 'होली' की कहानी ।। जो करे उसे सरहाने की भी हमरी सोच नहीं बनती है । स्वार्थवश दुनिया स्वार्थ आगे और कुछ ना सोचती है ।। - आवेश हिंदुस्तानी 25.06.2022 ©Ashok Mangal #AaveshVaani #JanhitKiRamayan #JanMannKiBaat