वज़ूद अपना मिटा दिया इश्क कि तहजीब सिखने में,, अंसारी मुझे क्या मालूम था इश्क इतना अच्छा हैं,, हमने तो खुद को भुला दिया रहबरी करने में,, ऐ इश्क हैं साहिब सब को दिवाना बना देती है,,