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ख्वाबों का झुरमुट ओढ़े झील किनारे बैठे बैठे पत्थर

ख्वाबों का झुरमुट ओढ़े
झील किनारे बैठे बैठे
पत्थर फेंका यूं ही मैंने 
और तरंगित जल के भीतर
एक तुम्हारा चित्र उकेरा
स्मृतियों के नरम पटल पर
जल दर्पण में तुम मुस्काई
शाम सवेरे इसी तरह से
मैंने तुझको याद किया
ओ परदेसी! ओ अनजाने!
सबने तुझको याद किया।

©Saroj Choudhary
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