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रिमझिम करते बादल, गीली मिट्टी की वो भीनी ख़ुशबू,

रिमझिम करते बादल, 
गीली मिट्टी की वो भीनी ख़ुशबू, 
रात के सन्नाटे में बूंदें बरसने की 
हल्की आवाज़ और बालकनी में 
पुराने गानों का साथ! 
कितना सुखदायक होता है न?

आज ऐसी ही इक़ रात है।

(अनुशीर्षक में पढ़ें) रिमझिम करते बादल, गीली मिट्टी की वो भीनी ख़ुशबू, रात के सन्नाटे में बूंदें बरसने की हल्की आवाज़ और बालकनी में पुराने गानों का साथ! कितना सुखदायक होता है न?

आज ऐसी ही इक़ रात है।

बालों को क्लचर से आज़ाद कर, मैं जा बैठी बालकनी में पड़ी उस हल्की भूरी रंग की कुर्सी पर। 

ज़ुल्फें ऐसे लहलहा रहीं थीं जैसे मौसम के नशे में हवा संग रम जाना चाह रहीं हों। जी भर के ख़ुशियों में झूमना चाह रहीं हों; फिर चाहे जितनी उलझ जाएँ, इसकी परवाह नहीं! फिर चाहे गुत्थी सुलझे ना सुलझे, आज, इस पल में, लापरवाह सी हो गईं थीं।
रिमझिम करते बादल, 
गीली मिट्टी की वो भीनी ख़ुशबू, 
रात के सन्नाटे में बूंदें बरसने की 
हल्की आवाज़ और बालकनी में 
पुराने गानों का साथ! 
कितना सुखदायक होता है न?

आज ऐसी ही इक़ रात है।

(अनुशीर्षक में पढ़ें) रिमझिम करते बादल, गीली मिट्टी की वो भीनी ख़ुशबू, रात के सन्नाटे में बूंदें बरसने की हल्की आवाज़ और बालकनी में पुराने गानों का साथ! कितना सुखदायक होता है न?

आज ऐसी ही इक़ रात है।

बालों को क्लचर से आज़ाद कर, मैं जा बैठी बालकनी में पड़ी उस हल्की भूरी रंग की कुर्सी पर। 

ज़ुल्फें ऐसे लहलहा रहीं थीं जैसे मौसम के नशे में हवा संग रम जाना चाह रहीं हों। जी भर के ख़ुशियों में झूमना चाह रहीं हों; फिर चाहे जितनी उलझ जाएँ, इसकी परवाह नहीं! फिर चाहे गुत्थी सुलझे ना सुलझे, आज, इस पल में, लापरवाह सी हो गईं थीं।
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