मेरे काँधे पर उस रात, तुम्ही ने टेका अपना था ये सिर, मन घूम रहा था इधर उधर, आ गया सिमट कर, उस एक जगह, याद है वो चुम्बन क्या जिसमें, ललाट अधर से मिल पाया, है आज भी शोभित उन अधरों पर नाम तुम्हारा, जिसने मेरे मन के अंदर जाकर, मेरी काया को महकाया, है स्तब्ध तभी से अब तक, सुलग रही थी मेरे मन में, बहकी ज्वाला, बदल रहा था मौसम सारा, मानो रात अंधरे में, था तिमिर बहुत, फैल रहा था उजियारा । ©Mehta Devershi मेरे काँधे पर उस रात... #Love