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फिर दिल के आईने में उतरने लगी हो तुम शीशे की धूल उ

फिर दिल के आईने में उतरने लगी हो तुम
शीशे की धूल उड़ा के सँवरने लगी हो तुम 

मेरे लिये तो पंख से हल्की हो आज भी 
कुछ लोग कह रहे थे कि भरने लगी हो तुम 

ये रूप ,ये लचक ,ये चमक ,और ये नमक 
शादी के बाद और निखरने लगी हो तुम 

मैं कोएले की तरह सुलगने लगा हूँ जान 
लोबान के धुएँ सी बिखरने लगी हो तुम 

अक्सर मैं देखता हूँ कि शीशे के शहर से 
पत्थर की पालकी में गुज़रने लगी हो तुम 

किससे कहूँ  कि रूह के कागज़ पे आज कल
चिंगारियों   की तरह ठहरने लगी हो तुम

गीली है मेरी आँख तो क्या दिल के देस में 
पानी के रास्ते से उतरने लगी हो तुम ?

...

©SamEeR “Sam" KhAn #धूल
फिर दिल के आईने में उतरने लगी हो तुम
शीशे की धूल उड़ा के सँवरने लगी हो तुम 

मेरे लिये तो पंख से हल्की हो आज भी 
कुछ लोग कह रहे थे कि भरने लगी हो तुम 

ये रूप ,ये लचक ,ये चमक ,और ये नमक 
शादी के बाद और निखरने लगी हो तुम 

मैं कोएले की तरह सुलगने लगा हूँ जान 
लोबान के धुएँ सी बिखरने लगी हो तुम 

अक्सर मैं देखता हूँ कि शीशे के शहर से 
पत्थर की पालकी में गुज़रने लगी हो तुम 

किससे कहूँ  कि रूह के कागज़ पे आज कल
चिंगारियों   की तरह ठहरने लगी हो तुम

गीली है मेरी आँख तो क्या दिल के देस में 
पानी के रास्ते से उतरने लगी हो तुम ?

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©SamEeR “Sam" KhAn #धूल