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कोहरा दिखती नहीं इंसानियत, धुंधला चुकी तस्वीर इं

कोहरा  दिखती नहीं इंसानियत, 
धुंधला चुकी तस्वीर इंसानो की,
और हम दोष कोहरे पे मढ़ आते हैं। 
कुछ जलते पराली पंजाब हरियाना के किसानों की, 
जहर दिल्ली की फिजाँऔं में घोल आता हैं,
ये बात हरकौई यहाँ सुनाता हैं। 
कल-कारखानो लाखों वाहनो के निकलते धुएँ के प्रदुषण को, 
शानो शौकत ये अपनी बताता हैं। 
कायरतापूर्ण आँखों के सामने होते देखी थी, 
इज्ज़त तार-तार नारी (निर्भया) की,
और बजह धुंध कोहरे से ना देख पाने की बड़ी बेशर्मी से बताता हैं। 
हमसे बेहतर तो ये सर्द माह के कोहरे हैं,
कमसे कम मिज़ाज मौसम का तो समझाता हैं। 
दिखता नहीं इंसानियत हमारे खुद के वहम से, 
और अंततः दोष हम कोहरे पे ही मढ़ आते हैं। 

(हर विषय पे लिखते हैं प्रेमी कविता अपने प्रीत की, 
मैं ठहरा अनपढ़ जाहिल सिंन्टु फिर क्यों ना करु बात इंसानियत की हित की) #कोहरे मौसम का मिज़ाज समझाता हैं।
कोहरा  दिखती नहीं इंसानियत, 
धुंधला चुकी तस्वीर इंसानो की,
और हम दोष कोहरे पे मढ़ आते हैं। 
कुछ जलते पराली पंजाब हरियाना के किसानों की, 
जहर दिल्ली की फिजाँऔं में घोल आता हैं,
ये बात हरकौई यहाँ सुनाता हैं। 
कल-कारखानो लाखों वाहनो के निकलते धुएँ के प्रदुषण को, 
शानो शौकत ये अपनी बताता हैं। 
कायरतापूर्ण आँखों के सामने होते देखी थी, 
इज्ज़त तार-तार नारी (निर्भया) की,
और बजह धुंध कोहरे से ना देख पाने की बड़ी बेशर्मी से बताता हैं। 
हमसे बेहतर तो ये सर्द माह के कोहरे हैं,
कमसे कम मिज़ाज मौसम का तो समझाता हैं। 
दिखता नहीं इंसानियत हमारे खुद के वहम से, 
और अंततः दोष हम कोहरे पे ही मढ़ आते हैं। 

(हर विषय पे लिखते हैं प्रेमी कविता अपने प्रीत की, 
मैं ठहरा अनपढ़ जाहिल सिंन्टु फिर क्यों ना करु बात इंसानियत की हित की) #कोहरे मौसम का मिज़ाज समझाता हैं।